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Showing posts from May, 2025

हमारे जमाने में साइकिल तीन चरणों में सीखी जाती थी poetry in hindi

हमारे जमाने में साइकिल तीन चरणों में सीखी जाती थी !  पहला चरण   -   कैंची  दूसरा चरण    -   डंडा  तीसरा चरण   -   गद्दी  तब साइकिल चलाना इतना आसान नहीं था क्योंकि तब घर में साइकिल बस पापा या चाचा चलाया करते थे. तब साइकिल की ऊंचाई 24 इंच हुआ करती थी जो खड़े होने पर हमारे कंधे के बराबर आती थी ऐसी साइकिल से गद्दी चलाना मुनासिब नहीं होता था। "कैंची" वो कला होती थी जहां हम साइकिल के फ़्रेम में बने त्रिकोण के बीच घुस कर दोनो पैरों को दोनो पैडल पर रख कर चलाते थे। और जब हम ऐसे चलाते थे तो अपना सीना तान कर टेढ़ा होकर हैंडिल के पीछे से चेहरा बाहर निकाल लेते थे, और "क्लींङ क्लींङ" करके घंटी इसलिए बजाते थे ताकी लोग बाग़ देख सकें की लड़का साईकिल दौड़ा रहा है । आज की पीढ़ी इस "एडवेंचर" से महरूम है उन्हे नही पता की आठ दस साल की उमर में 24 इंच की साइकिल चलाना "जहाज" उड़ाने जैसा होता था। हमने ना जाने कितने दफे अपने घुटने और मुंह तोड़वाए है  और गज़ब की बात ये है कि तब दर्द भी नही होता था गिरने के बाद चारो तरफ...

श्मशान में जब महर्षि दधीचि के मांसपिंड का दाह संस्कार हो रहा था तो उनकी पत्नी अपने पति का वियोग सहन नहीं कर पायीं और पास में ही स्थित विशाल पीपल वृक्ष के कोटर में 3 वर्ष के बालक को रख स्वयम् चिता में बैठकर सती हो गयीं। poetry

श्मशान में जब महर्षि दधीचि के मांसपिंड का दाह संस्कार हो रहा था तो उनकी पत्नी अपने पति का वियोग सहन नहीं कर पायीं और पास में ही स्थित विशाल पीपल वृक्ष के कोटर में 3 वर्ष के बालक को रख स्वयम् चिता में बैठकर सती हो गयीं।  इस प्रकार महर्षि दधीचि और उनकी पत्नी का बलिदान हो गया किन्तु पीपल के कोटर में रखा बालक भूख प्यास से तड़प तड़प कर चिल्लाने लगा।जब कोई वस्तु नहीं मिली तो कोटर में गिरे पीपल के गोदों(फल) को खाकर बड़ा होने लगा।  कालान्तर में पीपल के पत्तों और फलों को खाकर बालक का जीवन येन केन प्रकारेण सुरक्षित रहा।   एक दिन देवर्षि नारद वहाँ से गुजरे। नारद ने पीपल के कोटर में बालक को देखकर उसका परिचय पूंछा- नारद- बालक तुम कौन हो ? बालक- यही तो मैं भी जानना चाहता हूँ । नारद- तुम्हारे जनक कौन हैं ? बालक- यही तो मैं जानना चाहता हूँ ।    तब नारद ने ध्यान धर देखा।नारद ने आश्चर्यचकित हो बताया कि हे बालक ! तुम महान दानी महर्षि दधीचि के पुत्र हो। तुम्हारे पिता की अस्थियों का वज्र बनाकर ही देवताओं ने असुरों पर विजय पायी थी। नारद ने बताया कि तुम्हारे पिता दधीचि की मृ...

एक बार एक व्यक्ति रेगिस्तान में कहीं भटक गया । poetry

एक बार एक व्यक्ति रेगिस्तान में कहीं भटक गया । उसके पास खाने-पीने की जो थोड़ी बहुत चीजें थीं, वो जल्द ही ख़त्म हो गयीं और पिछले दो दिनों से वह पानी की एक-एक बूंद के लिए तरस रहा था वह मन ही मन जान चुका था कि अगले कुछ घण्टों में अगर उसे कहीं से पानी नहीं मिला तो उसकी मौत निश्चित है । पर कहीं न कहीं उसे ईश्वर पर यकीन था कि कुछ चमत्कार होगा और उसे पानी मिल जाएगा ।  तभी उसे एक झोँपड़ी दिखाई दी । उसे अपनी आँखों पर यकीन नहीं हुआ । पहले भी वह मृगतृष्णा और भ्रम के कारण धोखा खा चुका था । पर बेचारे के पास यकीन करने के अलावा कोई चारा भी तो न था । आखिर यह उसकी आखिरी उम्मीद जो थी ।  वह अपनी बची खुची ताकत से झोँपडी की तरफ चलने लगा । जैसे-जैसे करीब पहुँचता, उसकी उम्मीद बढती जाती और इस बार भाग्य भी उसके साथ था । सचमुच वहाँ एक झोँपड़ी थी । पर यह क्या ? झोँपडी तो वीरान पड़ी थी । मानो सालों से कोई वहाँ भटका न हो । फिर भी पानी की उम्मीद में वह व्यक्ति झोँपड़ी के अन्दर घुसा । अन्दर का नजारा देख उसे अपनी आँखों पर यकीन नहीं हुआ । वहाँ एक हैण्ड पम्प लगा था । वह व्यक्ति एक नयी उर्जा से भर ग...